गंगरेल डेम धमतरी छत्तीसगढ़ की पूरी जानकारी | mini goa of chhattisgarh |gangrel dam| maa angaar moti mandir
गंगरेल डेम धमतरी छत्तीसगढ़ |
गंगरेल डेम प्रोजेक्ट अपने निर्मांण के समय से ही अपने आप में एक अनूठा प्रोजेक्ट रहा है, जिसे साल 1978 में बनाया गया था। आईए जानें गंगरेल डेम की खास बातें।
इंदिरा गांधी ने किया था लोकार्पण:-
यह छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित है।यह धमतरी जिले का एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है जो धमतरी से लगभग 15 किमी और रायपुर से लगभग 90 किमी दूर है। इसे रविशंकर सागर बांध के नाम से भी जाना जाता है। गंगरेल बांध का निर्माण सन 1978 में हुआ। इसका लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों किया गया था।
महानदी नदी के पार, जलाशय में बहुत सारे पानी के खेल, द्वीप समूह और बहुत कुछ है। मॉनसून के दौरान, रविशंकर डैम के रूप में भी जाना जाता है, एक सुरम्य द्वीप और समृद्ध वनस्पतियों और जीवों के साथ यात्रा करना चाहिए।
पर्यटकों के ठहरने के लिए राज्य पर्यटन बोर्ड की अपनी संपत्ति हैप्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा बांध रविशंकर जलाशय न सिर्फ अगाध जलराशि के संग्रहण के लिए सुविख्यात है, ब्लकि इसकी प्राकृतिक सुंदरता देश-विदेश के सैलानियों को सदैव आकृष्ट करती रही है।
प्रदेश की राजधानी रायपुर से करीब होने के कारण यह जलाशय पर्यटकों की पहली पसंद बना हुआ है। यह महानदी नदी के पार बनाया गया है छत्तीसगढ़ में यह सबसे लम्बा बांध है। यह बांध वर्षभर के सिचाई प्रदान करता है जिससे किसान प्रतिवर्ष दो फसलों का उत्पादन कर सकते है और भिलाई स्टील प्लांट को भी पानी दिया जाता है।
अब गंगरेल डेम जाएंगे तो काफी कुछ मिलेगा नया-
पर्यटन को बढ़ावा देने वैकल्पिक सुविधाएं विकसित की जा रहीं-
गंगरेल बांध, जो कि रविशंकर जलाशय के नाम से विख्यात है, का निर्माण वर्ष 1978 में हुआ था। प्रारम्भिक वर्षों में यह क्षेत्र सिर्फ जलाशय में जलभराव और मां अंगारमोती मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था।
अब पर्यटन को बढ़ावा देने एवं सैलानियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से जिला प्रशासन के सहयोग से जल संसाधन एवं पर्यटन विभाग द्वारा नई अधोसंरचनाएं विकसित की जा रही हैं। रुकने के लिए यहाँ बरदिहा लेक व्यू रिसोर्ट बनाया गया है।
बांध के प्रवेश क्षेत्र में बायीं ओर खाली जमीन पर नवीन पार्क तैयार किया गया है। इस पार्क में बच्चों के लिए आधुनिक झूले, कृत्रिम झरने, पुल तथा रंग-बिरंगी लाइट युक्त फव्वारे बनाए गए हैं। इसके अलावा यहां पर ट्रैकिंग, खेलकूद के लिए जगह के साथ-साथ हरी-भरी घासयुक्त लम्बे लॉन भी तैयार किए गए हैं।
रायपुर में खारून नदी के किनारे बनाए गए लक्ष्मण झूला गार्डन की तर्ज पर उससे अधिक एरिया में सुव्यवस्थित ढंग से उक्त नवीन पार्क को तैयार किया गया है।
माँ अंगारमोती का मंदिर :-
जब गंगरेल बांध बनकर तैयार हुआ उस समय अनेक गाँव के साथ अनेक देवी-देवतओं के मंदिर भी जल में समां गए थे, जिनमें से एक माँ अंगारमोती का मंदिर भी था।
इसके पश्चात विधि-विधान के साथ देवी की मूर्ति को पूर्व स्थान से हटाकर गंगरेल बांध के समीप स्थापित किया गया है। यहाँ विशाल वृक्ष के नीचे खुले चबूतरे पर उनकी प्राण-प्रतिष्ठा की गई है। चूंकी देवी को वन देवी भी कहा जाता है इस कारण खुले स्थान पर ही उनकी पूजा की जाती है।
यह भी मान्यता है कि यहाँ देवी लोगों की मनोकामना पूरी कर देती है। मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात यहाँ बलि देने की भी प्रथा है। कहा जाता है कि हर शुक्रवार को बलि देने वालों का तांता लगा होता है।
दीपावली के बाद प्रथम शुक्रवार को देवी के मंदिर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें विभिन्न गावों के देवी-देवता समेत हजारों लोग आते हैं।
वन विभाग द्वारा अंगारमोती माता मंदिर के आगे मानव वन विकसित किया गया है, जहां पर आयुर्वेदिक एवं औषधीय महत्व के पौधे लगाए गए हैं। एडवेंचर के शौकीन लोगों के लिए मानववन सही जगह है बच्चों के लिए झूलों के साथ साथ छोटा सा चिड़ियाघर भी बनाया गया है। जहाँ लव बर्ड ,मोर ,खरगोश ,चीतल जैसे जानवर है।
गंगरेल की क्षमता:-
इन सबके अतिरिक्त सैलानियों के आवागमन की सुविधा को बेहतर बनाने अम्बेडकर चैक से गंगरेल मार्ग का चैाड़ीकरण किया जाना प्रस्तावित है, जो कि गंगरेल से खिरकीटोला होते हुए पुरूर में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-30 से जुड़ेगी।
इसके अलावा गंगरेल डूबान क्षेत्र के ग्राम विश्रामपुर के पास रामटेकरी नामक जगह है, जहां पर पुरातात्विक महत्व के पाषाण अवशेष हैं। आने वाले समय में इसे भी पर्यटन के लिहाज से विकसित करने की कार्ययोजना है। इस तरह पर्यटन की दृष्टि से रविशंकर जलाशय क्षेत्र में अनेक नवाचार विकसित किए जा रहे हैं, जिससे पर्यटकों को निकट भविष्य में बेहतर एवं उच्च स्तरीय सुविधाएं मिलेंगी।
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