गोन्चा पर्व बस्तर दशहरा आदिवासी बहुल क्षेत्र बस्तर के जगदलपुर नगर में मनाए जाने वाले रथयात्रा पर्व में एक अलग ही परंपरा, एक अलग ही संस्कृति देखने को मिलती है। सामान्यतः विशालकाय रथों को परंपरागत तरीकों से फूलों तथा कपड़ों से सजाया जाता है तथा बहुत धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है।
दूसरा मुख्य आकर्षण यह कि यहाँ जगन्नाथ का स्वागत ‘‘तुपकी’’ चलाकर किया जाता है। यही नहीं, जगदलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर के छः खंडों में सात जोड़े (जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रादेवी ) के अलावा एक मूर्ति केवल जगन्नाथ की सहित कुल 22 प्रतिमाओं का एक साथ एक ही मंदिर में स्थापित होना, पूजित होना भी महत्वपूर्ण है।
गोन्चा पर्व जगदलपुर | बस्तर दशहरा
बस्तर गोंचा महापर्व में गोंचा रथ यात्रा विधान सालों से जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर मनाया जाता है। जानकारी के मुताबिक जगन्नाथ पुरी में पुरी के महाराजा के द्वारा रथ पथ पर झाड़ू लगाने की परंपरा की शुरूआत की गई थी जिसे आज भी निभाया जा रहा है। इस परंपरा के अनुसार राज परिवार के सदस्य अपने पारंपरिक वेश-भूषा व दलबल के साथ पहुंचकर भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र के रथ की परिक्रमा कर झाड़ू लगाते हैं। इस विधान को छेरा पहरा कहा जाता है। इसके बाद परंपरा के अनुसार रथारूढ़ विग्रहों की पूजा अर्चना के बाद रथ यात्रा निकाली जाती है।
बस्तर दशहरा जगदलपुर
जगदलपुर, नारायणपुर के साथ-साथ कोण्डागांव और पलारी में भी यह पर्व मनाया जाता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा की पूजा की जाती है। इस दिन विषेश कर बांस की तुपकियों में ‘पेंग फल (मालकांगिनी) भरकर एक-दूसरे पर पेंगो की की बरसात उत्साह पूर्वक करते है। यह प्रथा आज भी प्रचलित है। पहले श्री गोन्चा तथा सात दिन बाद बाहड़ा गोन्चा होता है। पलारी में रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा के स्थानीय देवी-देवता रथ पर बैठते हैं।
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