छत्तीसगढ़ विधानसभा-एक परिचय

इस पोस्ट में हम जानेंगे छत्तीसगढ़ विधानसभा में कितने क्षेत्र हैं? छत्तीसगढ़ विधानसभा में कितने सदस्य हैं? विधानसभा अध्यक्ष कौन हैं? क्षेत्र का नाम क्या है?

केन्द्र में कार्यपालिका की शक्तियां राष्ट्रपति तथा राज्यों में राज्यपाल में निहित होती हैं, तथा वे इसका सीधा उपयोग न करते हुए मंत्रि परिषद् की सलाह से कार्य करते हैं। केन्द्र में प्रधानमंत्री तथा राज्यों में मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रि परिषद् सामूहिक रूप से जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों की सर्वोच्च विधायी संस्था के प्रति जवाबदेह होती है .

विधायिका का कार्य है विधान बनाना, नीति निर्धारण करना, शासन पर संसदीय निगरानी रखना तथा वित्तीय नियंत्रण करना। दूसरी ओर कार्यपालिका का कार्य है विधायिका द्वारा बनायी गयी विधियों और नीतियों को लागू करना एवं शासन चलाना। राज्यों की विधायिका विधान सभा के लिए निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से गठित होती है। इन जनप्रतिनिधियों को ”विधायक” कहा जाता है।

संविधान के अनुसार विधान मण्डल राज्यपाल एवं विधान सभा को मिलकर बनता है। विधान सभा को आहूत करना, सत्रावसान करना, विधान सभा द्वारा पारित विधेयक पर अनुमति देना तथा विधान सभा में अभिभाषण देना आदि विधान सभा से संबंधित राज्यपाल के महत्वपूर्ण कार्य हैं।

सभा द्वारा पारित विधेयक तब तक अधिनियम नहीं बनता जब तक कि राज्यपाल उस पर अपनी स्वीकृति नहीं देते हैं। अन्त: सत्रकाल में जब राज्यपाल को यह संतुष्टि हो जाये कि तत्काल कार्यवाही करना आवश्यक है, तब वे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकते हैं। यह कानून की तरह ही लागू होता है।

वर्तमान में छत्तीसगढ़ विधानसभा पदाधिकारी गण –

  • सुश्री अनुसुईया उइके -मान.राज्यपाल
  • डॉ. चरणदास महंत-मान. अध्यक्ष
  • श्री भूपेश बघेल-मान‍.मुख्यमंत्री
  • श्री नारायण चंदेल-मान. नेता प्रतिपक्ष
  • श्री रविन्द्र चौबे-मान. संसदीय कार्य मंत्री
  • श्री दिनेश शर्मा-सचिव

सभा का अध्यक्ष:-

विधान सभा एवं विधानसभा सचिवालय का प्रमुख, पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष) होता है, जिसे संविधान, प्रक्रिया, नियमों एवं स्थापित संसदीय परंपराओं के अन्तर्गत व्यापक अधिकार होते हैं। सभा के परिसर में उनका प्राधिकार सर्वोच्च है। सभा की व्यवस्था बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी होती है और वे सभा में सदस्यों से नियमों का पालन सुनिश्चित कराते हैं। सभा के सभी सदस्य अध्यक्ष की बात बड़े सम्मान से सुनते हैं। अध्यक्ष सभा के वाद-विवाद में भाग नहीं लेते, अपितु वे विधान सभा की कार्यवाही के दौरान अपनी व्यवस्थाएँ/निर्णय देते हैं। जो पश्चात् नज़ीर के रूप में संदर्भित की जाती हैं।
सभा में अध्यक्ष और उनकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष सभा का सभापतित्व करते हैं और दोनों की अनुपस्थिति में सभापति तालिका का कोई एक सदस्य। सभापति तालिका की घोषणा प्रत्येक सत्र में माननीय अध्यक्ष सदन में करते हैं।

छत्तीसगढ़ विधानसभा के सत्र:-

विधान सभा का सत्र आहूत करने की शक्ति राज्यपाल में निहित होती है। संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।

छत्तीसगढ़ विधानसभा के गठन के पश्चात् प्रथम सत्र के प्रारंभ में और प्रत्येक कैलेण्डर वर्ष के प्रथम सत्र में राज्यपाल सभा में अभिभाषण देते हैं। राज्यपाल के सदन में पहुंचने की सूचना सदस्यों को दी जाती है, तथा उनके विधान सभा भवन के मुख्य द्वार पर पहुंचने पर विधान सभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, संसदीय कार्य मंत्री, विधान सभा के प्रमुख सचिव, राज्यपाल के प्रमुख सचिव के साथ चल-समारोह में सभा भवन में पहुंचते हैं। जैसे ही राज्यपाल सभा कक्ष में प्रवेश करते हैं, मार्शल उनके आगमन की घोषणा करते हैं। सदस्य अपने स्थानों पर खड़े हो जाते हैं और तब तक खड़े रहते हैं जब तक कि राज्यपाल आसंदी पर पहुंचकर अपना स्थान ग्रहण नहीं कर लेते। उसके तुरंत बाद राष्ट्र गान की धुन बजाई जाती है, राज्यपाल का अभिभाषण होता है। अभिभाषण की समाप्ति के बाद पुन: राष्ट्र गान की धुन बजाई जाती है।

छत्तीसगढ़ विधानसभा सत्र सामान्य तौर पर वर्ष में तीन बार आहूत किए जाते हैं, जो कि बजट सत्र, मानसून सत्र तथा शीतकालीन सत्र कहलाते हैं। विधान सभा के प्रत्येक सत्र की प्रथम बैठक राष्ट्रगीत एवं राज्य गीत से प्रारंभ होती है और सत्र की अन्तिम बैठक राष्ट्रगान से समाप्त होती है।

सभा का कार्य:-

राज्य तथा लोक महत्व के महत्वपूर्ण विषयों पर सदस्यगण सदन में चर्चा करते हैं। जैसे कि –

(1)प्रश्न-उत्तर : –

प्रश्न-उत्तर के माध्यम से सदस्य किसी विषय पर शासन से जानकारी माँग सकते हैं। प्रश्न पूछते हैं, जिसका उत्तर शासन पक्ष की ओर से संबंधित विभाग के मंत्री देते हैं। शासन के प्रत्येक विभाग के लिए सप्ताह में एक दिन प्रश्नोत्तर हेतु नियत रहता है। प्रश्नोत्तर काल को सामान्यत: स्थगित नहीं किया जाता।शासन पर नियंत्रण का यह सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है इस कालखण्ड में मंत्री पूरी जवाबदेही से अपने विभाग के कार्यों की जानकारी देता है।

(2)छत्तीसगढ़ विधानसभा शून्यकाल :-

प्रश्नकाल के पश्चात् अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने, निवेदन करने का औपचारिक कार्य जब सदस्य अनुमति अथवा बिना औपचारिक अनुमति के अपनी बात सभा में कहते हैं ”शून्यकाल” कहलाता है। अब शून्यकाल की प्रक्रिया भी नियमों में सम्मिलित कर ली गई है। (नियम 267-क)

(3) ध्यानाकर्षण सूचना एवं स्थगन प्रस्ताव :-

ऐसे महत्वपूर्ण लोकहित के विषय जिस पर सदस्य बिना विलम्ब के शासन का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, इस प्रक्रिया का उपयोग करते हैं। जब कोई विषय अविलम्बनीय व इतना महत्वपूर्ण हो कि पूरा प्रदेश इससे प्रभावित होता है ऐसे विषय पर स्थगन प्रस्ताव के माध्यम से सभा विचार-विमर्श करती है। अर्थात सभा के समक्ष कार्यसूची के समस्त कार्य रोककर सभा स्थगन प्रस्ताव पर विचार करती है।

प्रस्तावों की ग्राह्यता का सर्वाधिकार अध्यक्ष का होता है।

(4) छत्तीसगढ़ विधानसभा वित्तीय कार्य :-बजट :-

शासन का वार्षिक आय-व्यय विवरण प्रति वर्ष बजट सत्र में सदन में बजट के रूप में वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। वित्त मंत्री शासन की नीतियों एवं योजनाओं का विवरण देते हुए विगत वर्ष के लक्ष्यों की पूर्ति का उल्लेख भी करते हैं। प्रथम चरण में सामान्य चर्चा होती है और द्वितीय चरण में विभागवार अनुदान माँगों पर चर्चा होती है। सभा द्वारा स्वीकृत किए जाने पर ही शासन आबंटित बजट को स्वीकृति अनुसार व्यय कर सकता है। शासन का वित्तीय वर्ष 01 अप्रैल से प्रारंभ होकर अगले वर्ष के 31 मार्च तक की अवधि के लिए रहता है। अत: छत्तीसगढ़ विधानसभा सामान्यत: बजट सत्र फरवरी-मार्च की अवधि में ही नियत होता है।

मानसून सत्र तथा शीतकालीन सत्र में अनुपूरक अनुमान संबंधी वित्तीय कार्य किये जाते हैं।

(5) विधायी कार्य :-

कार्यपालिका का यह कर्तव्य होता है कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत छत्तीसगढ़ विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विषयों पर आवश्यकतानुसार कानून बनाने हेतु विधेयक प्रस्तुत करें। विधान सभा में विधान/कानून बनाने संबंधी विधेयक पेश किए जाने पर उस पर चर्चा/वाद-विवाद होता है तथा जब पूण

विचारोपरांत विधेयक पारित कर दिया जाता है, तब इसे राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास अनुमति के लिये भेजा जाता है और विधेयक पर अनुमति प्राप्त होने पर वह अधिनियम बनता है। इसके बाद इसे क्रियान्वित कराने का उत्तरदायित्व पुन: कार्यपालिका को सौंप दिया जाता है।

क्षेत्र क्रमांक -छत्तीसगढ़ विधानसभा क्षेत्र का नाम

  • 1 भरतपुर – सोनहत
  • 2. मनेन्द्रगढ
    3. बैंकुठपुर
    4. प्रेमनगर
    5. भटगांव
    6. प्रतापपुर
    7. रामानुजगंज
    8. सामरी
    9. लुण्ड्रा
    10. अम्बिकापुर
    11. सीतापुर
    12. जशपुर
    13. कुनकुरी
    14. पत्थलगांव
    15. लैलुंगा
    16. रायगढ़
    17. सारंगढ
    18. खरसिया
    19. धर्मजयगढ
    20. रामपुर
    21. कोरबा
    22. कटघोरा
    23. पाली – तानाखार
    24. मरवाही
    25. कोटा
    26. लोरमी
    27. मुंगेली
    28. तखतपुर
    29. बिल्हा
    30. बिलासपुर
    31. बेलतरा
    32. मस्तुरी
    33. अकलतरा
    34. जांजगीर-चाम्पा
    35. सक्ती
    36. चन्द्रपुर
    37. जैजेपुर
    38. पामगढ
    39. सराईपाली
    40. बसना
    41. खल्लारी
    42. महासमुंद
    43. बिलाईगढ्
    44. कसडोल
    45. बलौदाबाजार
    46. भाटापारा
    47. धरसींवा
    48. रायपुर ग्रामीण
    49. रायपुर नगर पश्चिम
    50. रायपुर नगर उत्तर
    51. रायपुर नगर दक्षिण
    52. आरंग
    53. अभनपुर
    54. राजिम
    55. बिन्द्रानवागढ
    56. सिहावा
    57. कुरूद
    58. धमतरी
    59. संजारी बालोद
    60. डौण्डीलोहारा
    61. गुण्डरदेही
    62. पाटन
    63. दुर्ग ग्रामीण
    64. दुर्ग शहर
    65. भिलाई नगर
    66. वैशाली नगर
    67. अहिवारा
    68. साजा
    69. बेमेतरा
    70. नवागढ्
    71. पंडरिया
    72. कवर्धा
    73. खैरागढ
    74. डोंगरगढ्
    75. राजनांदगांव
    76. डोंगरगांव
    77. खुज्जी
    78. मोहला – मानपुर
    79. अंतागढ्
    80. भानुप्रतापपुर
    81. कांकेर
    82. केशकाल
    83. कोण्डागांव
    84. नारायणपुर
    85. बस्तर
    86. जगदलपुर
    87. चित्रकोट
    88. दन्तेवाडा
    89. बीजापुर
    90. कोन्टा

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