ढोकरा आर्ट बस्तर छत्तीसगढ़

ढोकरा आर्ट बस्तर के हर एक कला में कहानी छिपी हुई है यहाँ कलाकार प्रकृति से अपना इंस्पिरेशन लेते है।

ये अपनी कला से कहानी बुनते है चाहे कितनी भी छोटी चीज हो उसमे कहानी उकेरी हुई होती है ये आर्ट फॉर्म बेहद जटिल है।

dhokra ancient art form bastar

क्या है ढोकरा आर्ट –

ढोकरा आर्ट विश्व के कुछ सबसे पुराने आर्ट फॉर्म में से एक है छत्तीसगढ़ में भी सभी लोगों को इस कला की जानकारी नहीं है

इस शिल्प का काम बस्तर में किया जाता है इसकी शुरुआत 4000 साल पहले किया गया था

इतिहासकारों के मुताबिक ढोकरा आर्ट हड़प्पा व मोहनजोदड़ो सभ्यता में भी पाए गए थे।

ढोकरा का इतिहास –

इस आर्ट की कहानी कुछ ऐसी है की हमारे पूर्वज पेड़ के निचे बैठे हुए थे

तभी पेड़ से मधुमख्हियों का वैक्स (bee wax) यानि मोम दीमक के भिंभोरा (termite hill) पर गिरा और

धीरे धीरे पिघल कर एक आकृति में बदल गया इस घटना से वे बहोत प्रभावित हुए और यही से मोल्डिंग यानि ढलाई का कॉन्सेप्ट आया।

ढोकरा आर्ट आज पुरे विश्व में प्रसिद्ध है और इन कला कृतियों को लंदन ,पेरिस ,न्यूयोर्क के स्टोर्स में देखा जा सकता है।

बनाने का तरीका –

इस आर्ट को बनाने के दो तरीके है पहला है मेटल कास्टिंग (metal casting)

दूसरा है लॉस्ट वैक्स कास्टिंग (lost wax casting)और यह मेटल बनता है पीतल ,निकिल और जस्ता।

इसको बनाने के लिए उस आकृति की सबसे पहले मिट्टी का ढांचा तैयार किया जाता है

उसके ऊपर बी वैक्स का डिज़ाइन बनाया जाता है

उसके ऊपर फिर से मिट्टी का परत चढ़ाया जाता है इसके बाद इस आकृति को धुप में सूखा दिया जाता है

सूखने के बाद आग में इसे तपाया जाता है।

आग में तपने से बी वैक्स पिघल जाता है तथा निश्चित आकृति प्राप्त हो जाती है।

बस्तर की हर कलाकृति अपने आप में कहानी समेटे हुई है। ढोकरा आर्ट देखने में जितना सुन्दर और अद्वितीय है

उतना ही मुश्किल काम इसको बनाना है। ढोकरा आर्ट को पूरा बनाने में कलाकार को 6 -8 महीना लगता है।

छत्तीसगढ़ के गढ़वा और झारा जनजाति प्रमुख रूप से इस कार्य को करता है। इस आर्ट की अनोखी बात ये है

की हर एक पीस बिना कोई जोड़ के एक ही पीस में बनाया जाता है। 

ढोकरा आर्ट बनाने की जो कला पुराने समय से चली आ रही थी वही आज भी उपयोग किया जाता है। 

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