छत्तीसगढ़ में मनाये जाने वाले हर पर्व एवं त्यौहार का विशेष महत्व है समस्त छत्तीसगढ़ वासी बड़े धूमधाम से सभी त्योहारों को मनाते है .
रामनवमी – चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी के दिन भगवान श्री राम जी के जन्म दिन के अवसर पर छत्तीसगढ़ के लोगविवाह के लिए बहुत शुभ मानते है । इस दिन जवारा एवं ज्योति कलश विसर्जन किया जाता है ।
अक्षय तृतीया (अक्ति ) – इस पर्व के दौरान पुतली एवं पुतले का विवाह किया जाता है एवं अक्ति पर्व मनाया जाता है । इस दौरान छत्तीसगढ़ में विवाह का माहौल बहुत ज्यादा रहता है ।
बीज बोहानी– कोरवा जनजाति द्वारा बीज बोने से पूर्व यह उत्सव मनाया जाता है।
रथयात्रा -इस पर्व को मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा नें भगवान जगन्नाथ जी से द्वारका दर्शन करने की इच्छा जाहिर की जिसके फलस्वरूप भगवान ने सुभद्रा को रथ से भ्रमण करवाया तब से हर वर्ष इसी दिन जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है
गोंचा– बस्तर में प्रसिद्ध रथयात्रा को गोंचा कहा जाता है । यह बस्तर का महत्वपूर्ण आयोजन है तथा जगदलपुर में आयोजित किया जाता है ।
हरेली– मुख्य रूप से किसानों का पर्व है इस दिन सभी कृषि एवं लौह उपकरणों की पूजा की जाती है । यह त्यौहार छत्तीसगढ़ राज्य में प्रथम पर्व के रूप में मनाया जाता है । इस दिन बांस की गेंड़ी बनाकर बच्चे घूमते हैं ।
नाग पंचमी – इस पर्व के अवसर पर दलहा पहाड़ ( जांजगीर – चांपा ) में मेला आयोजित किया जाता है । नागपंचमी के अवसर पर कुश्ती खेल आयोजित की जाती है ।
रक्षाबंधन – यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बंधन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं।
भोजली– रक्षाबंधन के दूसरे दिन भाद्र मास की प्रतिप्रदा को यह पर्व मनाया जाता है , इस दिन लगभग एक सप्ताह पूर्व से बोये गये गेहूं , चावल आदि के पौधे रूपी भोजली को विसर्जित किया जाता है । यह मूलतः मित्रता का पर्व है इस अवसर पर भोजली का आदान – प्रदान होता है । जहाँ भोजली के गीत गाए जाते हैं । “ओ देवी गंगा , लहर तुरंगा” भोजली का प्रसिद्ध गीत है ।
छत्तीसगढ़ के पर्व एवं त्यौहार
हलषष्ठी ( कमरछठ ) – भागमास की कृष्ण षष्ठी को मनाया जाता है । इस पर्व में महिलाएँ भूमि पर कुंड बनाकर शिव – पार्वती की पूजा करती हैं और अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना करती हैं।
जन्माष्टमी – श्री कृष्ण जी के जन्मदिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है इस दिन गावों में मटका तोड़ने व दही लूटने का कार्यक्रम होता है।
पोला– भाद्र अमावस्या के दिन गाँवों में बैलों को सजाकर बैल दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है । बच्चे मिट्टी के बैल से खेलते हैं ।
अरवा तीज– इस दिन आम की डलियों का मंडप बनाया जाता है । विवाह का स्वरूप लिए हुए यह उत्सव वैसाख माह में अविवाहित लड़कियों द्वारा मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी -गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है।
नवाखानी – यह त्यौहार छत्तीसगढ़ में भादों माह के उज्ज्वल पखवाड़े या अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सितंबर के महीने में मनाया जाता है । इस दिन गोंड अपने पूर्वजों को नए अनाज और शराब चढ़ाते हैं । त्योहारों के उत्सव विभिन्न जिलों में अलग – अलग रूप लेते हैं । जिले के कोंडागांव तहसील में , बुद्ध देव की विशेष रूप से पूजा की जाती है , जबकि जगदलपुर तहसील में त्योहारों को मिठाई लेने और परिवार के सदस्यों को नए कपड़े देने के द्वारा मनाया जाता है ।
पितर पक्ष -पितृ पक्ष हिंदू कैलेंडर में 16-चंद्र दिन की अवधि है जब हिंदू अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, खासकर भोजन प्रसाद के माध्यम से।
नवरात्रि– चैत्र व अश्विन दोनों माह में माँ दुर्गा की उपासन का यह पर्व 9 दिन मनाया जाता है । अंचल के दंतेश्वरी , बम्लेश्वरी , महामाया, मनकादाई आदि शक्तिपीठों पर विशेष पूजन होता है । अश्विन नवराति में माँ दुर्गा की आकर्षक एवं भव्य प्रतिमाएँ भी स्थापित की जाती है
दशहरा – ये छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहार है। इसे राम को विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है । इस अवसर पर शस्त्र पूजन और दशहरा मिलन होता है । बस्तर क्षेत्र में यह देतेश्वरी की पूजा का पर्व है ।
बस्तर का दशहरा – बस्तर में दशहरा देवी दंतेश्वरी की पूजा से संबंधित है । इस अवसर पर रथ यात्रा आयोजित होती है । दशहरा उत्सव का आरंभ काकतीय नरेश पुरुषोत्तम देव ने किया । दशहरा उत्सव का आरंभ क्वार अमावस्या को काछन गुड़ी से होता है । माओली मंदिर में कलश स्थापना , जोगी बिठाना , रथ – यात्रा , कुंवारी पूजा , गोंचा , मुड़िया दरबार , देवी विदाई आदि दशहरा पर्व के विभिन्न चरण हैं । दंतेश्वरी माँ की प्रतिमा को पालकी में बिठाकर बाहर निकालने का अनुष्ठान उत्सव का महत्वपूर्ण पक्ष होता है । रथ खींचने का कार्य दंडामी माड़िया व धुरवा आदिवासी करते हैं। गोंड इस अवसर पर भवानी माता की पूजा करते हैं । गाँव की रक्षा के लिए भूमिया आदिवासी इस अवसर पर गामसेन देव की पूजा करते हैं ।
देवारी – छत्तीसगढ़ में दीपावली के त्यौहार को देवारी के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ में दीपावली को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता हैं।
गोवर्धन पूजा – कार्तिक माह में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है । यह पूजा गोधन की समृद्धि की कामना में की जाती है इस अवसर पर गोबर की विभिन्न आकृतियाँ बनाकर उसे पशुओ के खुरों से कुचलवाया जाता है ।
मातर – यह छत्तीसगढ़ के अनेक हिस्सों में दीपावली के तीसरे दिन मनाया जाने वाला एक मुख्य त्योहार है । मातर या मातृ पूजा कुल देवता की पूजा का त्योहार है । यहां के आदिवासी एवं यादव समुदाय के लोग इसे मानते है । ये लोग लकड़ी के बने अपने कुल देवता खोड़ हर देव की पूजा अर्चना करते है । राउत लोगो द्वारा इस अवसर पर पारम्परिक वेश भूषा में रंग- बिरंगे परिधानों में लाठियां लेकर नृत्य किया जाता है ।
festivals of chhattisgarh
दियारी – यह बस्तर के निवासियों द्वारा मनाई जाने वाली दीपावली है। इसकी कोई निश्चित तिथि नहीं होती बल्कि ग्राम प्रमुखों द्वारा बैठक करके तिथि निर्धारित की जाती है। पहले दिन ग्रामीण अपने गाय-बैलों को गेठा बांधते हैं तथा नाच-गाकर अपना उत्साह प्रकट करते हैं। दोपहर में गाय-बैलों की पूजा कर खिचड़ी खिलाई जाती है।
भाई दूज -यह दीपावली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं।
जेठवनी – इस पर्व में तुलसी विवाह के दिन तुलसी की पूजा की जाती है। इस दिन गन्ने की पूजा की जाती है। और गन्ने और कांदा का भोग किया जाता है।
मकर संक्रांति – इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह दिन बड़ा पावन माना जाता है क्योंकि इस दिन से खरमास का अंत होता है, जिससे मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन तिल का लड्डू बनाया खाया जाता है तथा पतंग उड़ाने की परंपरा है।
छेरछेरा – छेरछेरा त्यौहार पौष माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । यह पूस – पुन्नी के नाम से भी जाना जाता है । इस अवसर पर बच्चे नई फसल के धान माँगने के लिए घर – घर दस्तक देते है । उल्लासपूर्वक लोगों के घर जाकर ‘ छेरछेरा- कोठी के धान लाकर हेरा ‘ कहकर धान माँगते हैं । जिसका अर्थ है अपने भंडार में निकाल कर हमें दो । इसी दिन महिलाएँ अंचल का प्रसिद्ध सुवा नृत्य ‘ भी करती हैं। और पुरूष डंडा नृत्य करते है।
महाशिवरात्रि – महा शिवरात्रि एक हिंदू त्योहार है जो हर साल भगवान शिव के सम्मान में मनाया जाता है। नाम उस रात को भी संदर्भित करता है जब शिव तांडव नामक स्वर्गीय नृत्य करते हैं ।
माटी पूजा – माटी पूजा या ‘ पृथ्वी की पूजा छत्तीसगढ़ राज्य में महत्वपूर्ण महत्व का त्योहार है जहां लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है । इस त्यौहार के दौरान बस्तर जिले के आदिवासी लोग अगले सीजन के लिए फसलों की भरपूर पैदावार के लिए पृथ्वी की पूजा करते हैं । धार्मिक संस्कार और परंपराएं भी उनके द्वारा अत्यंत श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाई जाती हैं ।
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